Tuesday, 29 April 2014

जहरीली गंध


             हर जगह की अपनी एक महक होती है. यह महक उस जगह के बारे में सब कुछ कह देती है. ऐसी ही महक व्यक्तित्व में भी होती है. एक घने जंगल में ऑंखें बंद कर ने पर भी जंगल की गंध आप को जंगल में होने का राज कह जायेगी.पत्तियों से ढंकी मिट्टी की नम गंध, पेड़ों की पत्तियों पर सूरज की किरणे पड़ने से वाष्पित होते जल की उमस समेटे पेड़ की सोंधी गंध, पास ही कल-कल बहते जलस्त्रोत की ठंडक लिए खुनक भरी गंध, जंगल की हवा में समाहित हो एक घने जंगल की गंध बनाती हैं.
                 ऐसी ही घने जंगल की महक समेटे वह शहर लाइ गई थी. यहाँ हम उसे वन्या कहेंगे. वन्या राज्य के सुदूर दक्षिणी भाग के घने जंगल में बसे गॉव की आदिवासी बाला है. कभी घने जंगल सी शांत तो कभी पहाड़ी झरने सी चंचल. अक्सर कुछ समझ न आने पर अपनी गहरी काली आँखों से भयभीत हिरनी की तरह टुकुर- टुकुर देखने लगती तो कभी अच्छे से काम कर लेने की शाबासी में निर्झर के निश्छल जल सी झरती हंसी बिखेर देती. शहर के ऊंच-नीच, तौर-तरीकों से नावाकिफ, आपके हमारे चिढ़ जाने की हद तक भोली वन्या, जिसे घरेलु कामों में मदद के लिए श्रीमान विक्रांत शहर ले आये है.
                यह शहर भी आम शहरों की तरह है. हर ओर चिल्लपों, भीड़भाड़ और हवा में घुली जहरीली गंध. जो हर रात अपनी गहरी काली केंचुली उतार फर्श पर, सामानों की सतह पर छोड़ जाती है. शायद यही जहरीली गंध अधिकांश शहरियों के मन में भी कोई अज्ञात जहर घोल जाती है. खैर श्रीमान विक्रांत तो एक आधुनिक पॉश कॉलोनी में रहते है. जहा जहरीली गंध का असर दूसरों के लिए अज्ञात ही होता है.
                इस कॉलोनी में पच्चीस बंगले और तीस छह मंजिली इमारतें हैं. प्रत्येक ईमारत की एक मंजिल में चार फ़्लैट बने हुए हैं. जिनके दरवाजे आमने-सामने खुलते हैं. ये बात अलग है कि इतने पास रहने के बावजूद अधिकांश लोगों को पता नहीं होता कि उनके सामने या बगल में कौन रहता है पर इस मामले में श्रीमान विक्रांत की ईमारत कुछ अलग है. इसके सभी निवासी एक-दूसरे से मिलते रहते हैं. पतिदेवों के ऑफिस चले जाने के बाद पत्नियां घर के काम निपटा प्रायः पहली मंजिल के किसी एक घर में एकत्र हो जाती हैं या फिर सीढियाँ ही उनकी मिलनस्थली बन जाती है. पहली मंजिल इसलिए कि वे सभी ऊपर की ओर चढ़ने वालों पर नजर रख सकें. सीढ़ियों के मिलनस्थली बनने पर तो पूरी ईमारत उनकी बातों से गुलजार रहती है और अजनबियों से सुरक्षित भी. ऐसे में श्रीमान श्रीमती विक्रांत जैसे कामकाजी लोग भी बंद घर की सुरक्षा की ओर से निश्चिन्त रहते हैं.
                                   विक्रांत दंपत्ति बंद घर की सुरक्षा के लिए उतने चिंतित नहीं रहते हैं जितने चिंतित वे घर में चौबीस घंटे वन्या की मौजूदगी से रहने लगे थे. इसका कारण है वन्या का घंटी बजते ही दरवाजा खोल देना. वे वन्या को बार-बार समझाते की जब भी घंटी बजे पहले की-होल से देखना, कोई परिचित हो तो ही दरवाजा खोलना. अपरिचित दिखने पर पहले सेफ्टी चेन लगा कर धीरे से दरवाजा खोलना और दूर से ही क्या काम है? पूछना और जल्दी ही दरवाजा बंद कर लेना.
                       कितने ही बार इन निर्देशों को दोहरा देने के बावजूद गॉव की निश्छलता लिए वन्या झट दरवाजा खोल देती और दंपत्ति की चिंता और बढ़ जाती. वे उसे उदहारण दे समझाते कि कल ऊपर के फ़्लैट में कोई सेल्समैन आया था, दरवाजे को धक्का दे रहा था, जाने उसकी क्या मंशा थी, ये गॉव नहीं शहर है. यहाँ लोग अच्छे नहीं होते पर सावन के अंधे को सब हरा-हरा ही दिखता है, मन का साफ व्यक्ति सभी को अच्छा ही समझता है इसलिए भी और कुछ दिमाग की जड़ता भी वन्या के दरवाजे खोलने के तरीके में कोई अंतर न दिखता. आखिर दंपत्ति की उपस्थिति में उसे दरवाजे खोलने से मना ही कर दिया गया पर वनकन्या सी अल्हड़ वन्या भी हम पांच की स्वीटी की तरह दरवाजा खोलने को उत्सुक हो ऐसे दौड़ती जैसे दरवाजा खोलते ही शहर एक जादूगर की तरह उसके लिए कोई अनपेक्षित उपहार लिए खड़ा हो. हर बार की झिड़की भी वन्या में कोई सुधार न लाती.
                    इससे दंपत्ति की चिंता कई गुना बढ़ती गई. वन्या को प्रैक्टिस कराई गई. सामने श्रीमान विक्रांत खड़े होकर घंटी बजाते, अंदर श्रीमती विक्रांत वन्या से कहती, मान लो दरवाजे पर कोई अजनबी खड़ा है. तुम दरवाजा कैसे खोलोगी? निर्झर सी चंचल वन्या सागर सी गम्भीरता ओढ़े, की-होल से झांक कर देखती फिर झट दरवाजा खोल देती. श्रीमती विक्रांत की साँस अटक जाती. वह लाउड स्पीकर से आती आवाज में धैर्य का साइलेंसर लगा कर कहती, ‘दरवाजा क्यों खोल दिया?’ जवाब आता, ‘ साहब तो आये है.’ दंपत्ति सिर पकड़ लेते. सारी प्रैक्टिस फिर से दोहराई जाती. तीन चार बार की प्रैक्टिस से वन्या संतुष्टि लायक दरवाजा खोलना सीख लेती. एक दो दिन प्रैक्टिस के नशे का असर रहता पर फिर…….
                आप सोच सकते है कि ऐसी बात न मानने वाली वन्या को वापस गॉव क्यों नहीं भेज देते. यदि आप ऐसा सोचते हैं तो आप अवश्य ही ऐसे कामकाजी दंपत्ति की दुविधा नहीं जानते. कुछ घरेलु कामों में मदद की अतिशय आवश्यकता, शहरी नौकरों में उस विशिष्ट केंचुली की गंध के भय से विश्वास की कमी, कुछ सस्ते में आसानी से उपलब्ध वन्या, कुछ जब तक कुछ हो न जाये तब तक ऐसा नहीं होगा का अंधविश्वास. वन्या घर में बनी रही, चिंता मन में बढ़ती रही. एक दिन विक्रांत दंपत्ति शाम को ऑफिस से घर आये तो वन्या ने रोज से अलग सेफ्टी चेन लगा कर दरवाजा खोला. दोनों को अच्छे से देख कर फिर धीमे से सेफ्टी लॉक खोला.पहली बार ऐसा हुआ. दंपत्ति ख़ुशी से हैरान रह गए.
                               ये बात अलग है कि यह ख़ुशी अब कभी-कभी हैरानी भरी झिड़की में बदल जाती है कि वन्या जब की-होल से देख लेती हो कि हम हैं तो सेफ्टी चेन क्यों लगाती हो पर वन्या तो वन्या है. उसने तब से पहले की-होल से देखने फिर सेफ्टी चेन लगाकर खोलने का पाठ कंठस्थ कर लिया है. जब से उसने निचली मंजिल में दो लोगों को अचानक एक घर में तेजी से घुसते देखा था बाद में पता चला कि उस घर में डकैती हुई है और जिन्हें उसने घुसते देखा, वे डकैत थे.
                     इसके बाद यह तो बहुत अच्छा हुआ कि वन्या ने अब शहरी सावधानियों का पालन शुरू कर दिया है. दम्पत्ति की चिंता भी अब कम होने लगी है पर अब वन्या के ह्रदय की दीवारों से वो पुनर्उर्जित कर देने वाली घने जंगल की गंध बमुश्किल ही बाहर निकल पाती है. अब वन्या की घने जंगल की गंध में उसके दिमाग में नयी बहती शक की शहरी हवा में घुली काली केंचुली की गंध उभरने लगी है

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