Saturday 24 May 2014

चुड़ैल का रहस्य


      यह कहानी सिर्फ चुड़ैल के रहस्य से पर्दा उठाने की कहानी ही नहीं है. यह कहानी है मीनल में साहस और वैज्ञानिक दृष्टिकोण के पल्लवित पुष्पित बरगद के वृक्ष के बीज की. यह कहानी है अपने स्वार्थ और सुविधा के लिए बच्चों में रोपे जाने वाले खरपतवारों के बीज की भी. कोई सात साल की बच्ची चुड़ैल देखने जाने की हिम्मत करती है तो इसके पीछे क्या कारण हो सकता है? कोई अफवाह क्यों फैलाता है? किसी डर से जीतना क्या मायने रखता है? 
      यह तब की बात है जब मीनल तीसरी कक्षा में पढ़ती थी. मीनल के स्कूल के पीछे सिटी क्लब था. उसके चारों ओर खाली जमीन. सिटी क्लब के अहाते के पास एक विशाल बरगद और पीपल का जुड़ा हुआ एक विशाल पेड़ था. जिस पर बड़ा सा चबूतरा बना हुआ था. पेड़ के मोटे तने के बगल में चबूतरे के फर्श से कुछ इंच ऊपर ही एक खिड़की दिखती थी. मीनल और उसकी कक्षा के अन्य बच्चों को, उनसे बड़ी कक्षा में पढ़ने वाले बच्चों ने इसके बारे में जानकारी और चेतावनी दी थी. जानकारी कि इस पेड़ में चुड़ैल रहती है और चेतावनी कि चुड़ैल बच्चों को कच्चा चबा कर खा जाती है इसलिए इस पेड़ से हमेशा दूर रहना.
      चबूतरे के थोड़े दूर से एक पगडण्डी जाती थी जो उस तरफ से स्कूल आने का छोटा रास्ता थी. उस तरफ से स्कूल आने वाले बच्चे झुण्ड बना कर एक दूसरे का हाथ पकड़ कर डरते-डरते आते. ऐसे बच्चों का अनुभव मीनल और दूसरी तरफ रहने वाले बच्चे डर, रोमांच और उत्सुकता के साथ सुनते कि वहाँ से गुजरने पर कभी चूड़ियों की तो कभी पायल की छन-छन की आवाज आती है. कुछ बच्चों का अनुभव तो चुड़ैल देखने का भी होता. वे बताते कि बड़-पीपल की चुड़ैल कलाई से लेकर कोहनियों के ऊपर तक रंग-बिरंगी चूड़ियाँ पहने रहती है, ऐसी ही रंग-बिरंगी उसकी घाघरा चुनरी होती है. लम्बे घुंघराले बालों से उसका चेहरा छिपा होता है. उसकी सबसे बड़ी पहचान उलटे पैर होते हैं. उलटे पैर मतलब एड़ी आगे पंजा पीछे. सबको पॉव दिखाई नहीं देते लेकिन जिसने चुड़ैल के उलटे पॉव देख लिए चुड़ैल उसके पीछे पड़ जाती है और उसे बहुत सताती है. 
        इसके अलावा कुछ कहानियां तो चुड़ैल से सामना करने की भी सुनाई जाती जिन्हें मीनल दिलचस्पी के साथ सुनती जरुर पर घर में भूत, प्रेत, चुड़ैल के अस्तित्व पर अविश्वास के वातावरण के कारण उसे इन पर अंधविश्वास न होता. इन कहानियों में बच्चों की कल्पनाशीलता की उड़ान और मौलिकता की कमी नहीं रहती थी. जितने बच्चे उनसे अधिक विविध कहानियां. मीनल के घर का माहौल अंधविश्वास से परे और वैज्ञानिकता की कसौटी पर कस कर बातों को मानने पर विश्वास करना सिखाता इसलिए असके घर भूत, प्रेत, चुड़ैल का अस्तित्व कोई नहीं मानता था. उसके घर के बड़े कहते, "यह सब मन की कमजोरी होती है सिर्फ डरने वालों को ही ये दिखते हैं. वे चुनौती देते कि यदि भूत हैं तो कोई हमें दिखा कर बताये.
        घर के ऐसे संस्कारों केसाथ पलता बढ़ता मीनल का मन साथियों की बड़-पीपल की चुड़ैल की बातें सुन कर थोड़ा डरता तो था पर मन का यह डर दिमाग में डर कम अपितु रोमांच, उत्सुकता और आकर्षण अधिक  पैदा करता. आकर्षण दिलोदिमाग को चुड़ैल की ओर खींचता. मन चुड़ैल की बातें सुन उत्सुक होता और उसकी सच्चाई जानना चाहता. साथियों से सुनी चुड़ैल को देखने और उसका सामना करने की कहानियां डराती नहीं हिम्मत दिलाती, उसे लगता कि जब ये लोग चुड़ैल को देख सकते हैं उसका सामना कर सकते हैं तो मैं क्यों नहीं. 
            बस एक दिन मीनल ने निर्णय ले लिया कि अब तो चुड़ैल को देखना ही है. जहाँ तक तो चुड़ैल होती ही नहीं है. यदि चुड़ैल होती ही है और उससे सामना हो ही गया तो देखा जायेगा. जैसे ये लोग बड़-पीपल की चुड़ैल को देखने के बाद भी बचे हुए हैं तो हम भी बच सकते हैं. यदि चुड़ैल नहीं दिखी तो बड़-पीपल की चुड़ैल की कहानी सुना, शेखी बघारने वालों का मुह तो बंद करा ही सकूंगी कि मैं तो चुड़ैल देखने गई थी पर वह दिखी नहीं. घर के बड़ों के सामान चुनौती भी दे सकूंगी कि यदि चुड़ैल है तो फिर मुझे दिखा कर बताओ. 
           मीनल की कक्षा में ही मीनल के ही सामान सोच रखने वाली मीता भी थी. एक दिन खाने की छुट्टी में जब चुड़ैल की कहानी सुनाई जा रही थी दोनों ने एलान कर दिया कि हम ये सारी बातें झूठ मानते हैं. चुड़ैल होती ही नहीं है और इसको सिद्ध करने के लिए हम बड़-पीपल के चबूतरे पर चढ़ कर बताएँगे. यह सुनते ही कुछ सहेलियां डर से मना करने लगीं पर उस दिन तो दोनों ने चुड़ैल नहीं होती ये साबित करने का ठान ही लिया था. मीनल और मीता आगे बढे. सिटी क्लब के अहाते के पास पंद्रह-बीस बच्चे खड़े थे, जिनमे से कुछ इन्हें रोक रहे थे, कुछ डरे हुए थे और कुछ उनके अंजाम की उत्सुकता में थे. 
                यदि यह कहा जाये कि मीनल और मीता को तिल भर भी डर नहीं लगा तो यह सफ़ेद झूठ ही होगा. दोनों ही डरे हुए थे, उनके दिल धक् -धक् कर रहे थे. जैसे-जैसे बड-पीपल का चबूतरा पास आते जा रहा था उनके दिल की धड़कनें बढ़ती जा रही थी. उनके कान खड़े थे कि शायद अभी कंही से चूड़ियों या पायल की आवाज सुनाई दे जाये, उनके पैर उलटे पैरों भागने को तैयार और दिमाग ऐसा सतर्क कि जरुरत पड़ते ही सिर पर पैर रख कर भागने को तैयार. मीनल और मीता कस कर एक-दूसरे का हाथ पकड़े हुए थे. वे जैसे-जैसे चबूतरे के पास आ रहे थे, हाथों का कसाव बढता जा रहा था. उधर पीछे पंद्रह-बीस बच्चों का झुण्ड उन्हें देखता खड़ा, जिन्हें वे भी बीच-बीच में पलट कर देखते जाते थे. 
                 कदम दर कदम चबूतरे की दुरी कम होती गई. चबूतरे की सीढियाँ आयीं, वे चढ़ते गए, बड-पीपल के तने के पास पहुच गए, खिड़की खुली हुई थी. उन्होंने एक-दूसरे को देखा. अब तक कुछ नहीं हुआ था तो उन्हें कुछ और साहस मिला. उन्होंने आँखों ही आँखों में एक-दूसरे से कहा, 'चलो, खिड़की में देखते हैं.' मन में कोहनियों से ऊपर तक चूड़ियाँ पहने रन-बिरंगी घाघरा चुनरी पहने उलटे पैरों वाली चुड़ैल के बारे में सोचते हुए उन्होंने खिड़की से अंदर झाँका.' अरे यह क्या! यह तो सुन्दर सा एक कमरा था. कमरे में एक ओर पलंग में बिस्तर बिछा हुआ था. चुड़ैल तो कहीं थी ही नहीं. 
                       बस फिर उनका सारा डर दूर भाग गया और वे दोनों विजयी भाव से सहेलियों को असलियत बताने लौट पड़े. बस वह दिन था कि इसतरह की अंधविश्वास की बातों से मीनल का विश्वास पूरी तरह उठ गया. वे साँस रोके उन्हें देखते बच्चों के झुण्ड में वापस आये. खिड़की से दिखी असलियत बताई. विश्वास करने वालों ने उनपर विश्वास किया, अंधविश्वास रखने वालों ने कहा कि शायद चुड़ैल कहीं बाहर गई होगी इसीलिए नहीं दिखी, वो कमरा जरुर उस चुड़ैल का ही होगा. 
               मीनल के घर के संस्कारों के कारण उसमे अंधविश्वास यूँ ही कम था चुड़ैल देखने के इस हिम्मती कदम से उस का अंधविश्वास तो पूरा ख़त्म ही हो गया और इसकी जगह ले ली साहस के बरगद ने. अंधविश्वास के इस खात्मे ने बेवजह के डरों को भी ख़त्म कर दिया और उसमे वैज्ञानिक सोच पल्ल्वित होने लगी. बाद में मीनल ने उस कमरे की खिड़की वाली दीवार के सहारे आगे बढ़ते हुए अब तक बरक़रार उस कमरे का रहस्य भी पता लगा लिया कि वह कमरा सिटी क्लब से लगे होटल के पिछवाड़े बनी लॉज का एक कमरा है. बड़-पीपल की चुड़ैल की अफवाह का रहस्य भी उसे कुछ और बड़े होने पर समझ में आया कि स्कुल के बच्चों की उधम और तांक-झांक से कमरे में ठहरने वाले ग्राहकों को बचाने के लिए होटल वालों ने अपने स्वार्थ और सुविधा के लिए ही बड़-पीपल की चुड़ैल की अफवाह फैलाई थी.