Thursday 16 April 2015

पारस पत्थर


जगन इस्पात बनाने की फैक्ट्री में काम करता था. उसका काम बहुत मेहनत का और जोखिम भरा था,  हजार डिग्री से ऊपर के तापमान के उबलते लोहे की भट्ठी में वह पिघलाने के लिए क्रेन से कबाड़ के टुकड़े डालता था. बूढ़े माँ- बाप दूर दूसरे राज्य में रहते थे. वह उनसे इतनी दूर कमाने खाने के लिये इस फैक्ट्री में मजबूरी में काम  कर रहा था. उनकी और अपने पेट की भूख उसे अपनों से दूरी और इस शरीर को जला देने वाली गर्मी का भी लोहा लेने की शक्ति देती थी. उसे काम से कोई शिकायत नहीं थी. वह अपने काम में  बहुत ईमानदार था, कभी अपने कर्त्तव्य से अनुपस्थित नहीं रहता था लेकिन वह एक मजदूर ही था. ‘मजदूर’ जिसका जीवन अभावों की भट्ठी में निरंतर तपता रहता है.

अपनी अभाव भरी जिंदगी को वह बेरंग नहीं मानता था. उसे जीवन के रंगों की समझ थी और वह अपने जीवन में रंग भरने के हर अवसर को भरपूर जीता था. वह जीवन के हर रंग के प्रति आदर रखता था शायद इसीलिए उसका दिल संतुष्टि, संवेदना, दयालुता,  परोपकार से लबालब भरा रहता था. वह अभावों के बावजूद बाँट कर खाने में यकीन रखता था. वह अपने आसपास मौजूद लोगों के दुखदर्द बाँट कर कम और ख़ुशी को बाँट कर कई गुना कर देता था. शायद अपने इन्हीं सब गुणों के कारण वह ईश्वर का भी प्रिय होता गया और जल्दी ही ईश्वर ने उसे अपने पास बुला लिया.
उस दिन घर में बूढ़े माँ-बाप और शाम को एक खास जगह में खड़ी उस चमकीली आँखों वाली लड़की का इंतजार जीवन भर का इंतजार बन गया. वह सुबह सामान्य ही थी और वह सामान्य गति से ही अपना सारा काम कर रहा था. कन्वेयर बेल्ट से आते कबाड़ को क्रेन से उठाना और बलास्ट फर्नेस में डालना,  क्रेन वापस कबाड़ की ओर ले जाना लेकिन उस बार जब उसने ब्लास्ट फर्नेस में क्रेन से कबाड़ के टुकड़े डाले तो जाने कैसे उबलता हुआ लोहा एक जोर की आवाज के साथ खौलता हुआ बाहर आया और उस पर गिर पड़ा. वह बुरी तरह से जल गया.
उस गांव में यह नयी-नयी फैक्ट्री लगी थी,  सभी मजदूर भी नए थे. अधिकांश मजदूर उस गांव के नहीं अपितु कहीं दूर देश से आये मजदूर थे. फैक्ट्री के अंदर और बाहर बहती हवा में यह फुसफुसाहटें गाहे-बगाहे सुनाई दे जाती थी कि फैक्ट्री प्रबंधन जानबूझ कर स्थानीय लोगों को खतरे वाले कामों में नहीं रखता है. ऐसे कामों में वह दूर-दराज से आये अकेले लोगों को रखता है और यदि किसी दुर्घटना में मौत हो जाये तो चुपके से इन्हीं ब्लास्ट फर्नेस में उन्हें डलवा देता है. दुर्घटना की कोई आवाज बाहर नहीं आती केवल कुछ फुसफुसाहटें ही पानी में कंकड़ डालने से उठी लहर सी फैलती हुई शांत हो जाती हैं. जगन भी इन फुसफुसाहटों का सच बन गया.
लोहा पंद्रह सौ पचास डिग्री सेल्सियस तापमान पर पिघलता है जबकि मृत्यु के बाद जब अग्नि-संस्कार करते हैं तो जलती लकड़ी का तापमान तो कुछ ही सौ डिग्री सेल्सियस तक पहुँचता है जिसमें कुछ हड्डियां जलने से रह जाती हैं,  जिन्हें बटोर कर गंगा में प्रवाहित कर दिया जाता है. यह सामान्य जनों की बात है पर जगन तो फुसफुसाहटों का सच बन गया था इसीलिए इसमें कोई शंका नहीं कि उबलते लोहे में गिरते ही जगन की सारी हड्डियां भी राख हो गई होंगी. जीता-जागता, हाड़-मांस का जगन राख में बदल गया. उबलते लोहे में मौजूद अशुद्धि 'कार्बन'.
हेमेटाइट, मैग्नेटाइट अयस्क से लोहा बनाया जाता है. इन अयस्कों में सिलिका,  अल्युमिनियम,  कार्बन आदि की बहुत सी अशुद्धियाँ होती हैं जो लोहा बनाने की प्रक्रिया में कम होते जाती हैं और लोहा से इस्पात बनाने में और भी कम हो जाती हैं. जिस ब्लास्ट फर्नेस में जगन को डाल दिया गया उसमे भी लोहे से इस्पात बनाया जा रहा था. जब जगन उबलते लोहे में गिरा तो उस पल, उस उबलते लोहे में कार्बन की कुछ प्रतिशत अशुद्धि और बढ़ गई. आगे की संशोधन की प्रक्रियाओं में कार्बन की अशुद्धि कम होती गई पर कुछ तो बात थी जगन की राख में कि उस पिघले लोहे में जगन पूरे का पूरा कार्बन की अशुद्धि के रूप में ही सही पर मौजूद रहा.
उस ब्लास्ट फर्नेस में उबलते लोहे से लेकर लोहे की स्ट्रिप में बदलते तक यह लोहा कई सोपानों से गुजरता रहा. वह पिघला लोहा जमाया गया फिर पिघलाया गया फिर उससे प्लेट बनाई गई. उस प्लेट से फिर पतली स्ट्रिप्स बनाई गई पर पूरे का पूरा जगन उस एक ही स्ट्रिप में समाहित हो गया. यह स्ट्रिप  सुदूर विदेश को निर्यात कर दी गई. जगन भी अपनी माटी छोड़ उड़ चला. सुदूर विदेश में इस लोहे की स्ट्रिप का गैल्वेनिजेशन हुआ और अंततः इस लोहे की स्ट्रिप से एक बाइक बनी. बाइक जो दुनिया की सबसे महँगी बाइकों में से एक थी. जगन ने अपने जीवन में सिर्फ विपन्नता देखी थी लेकिन उसकी राख की नियति सम्पन्नता का चरम देखना था.
जगन अपनी नियति जी रहा था उसके बूढ़े माँ-बाप और वह चमकती आँखों वाली लड़की अपनी नियति जी रहे थे. बूढ़े माँ-बाप गांव में अब भी उसकी वापसी की राह ताक रहे थे. उनकी काम करने की शक्ति ख़त्म हो रही थी लेकिन पेट की भूख कम नहीं हो रही थी. उन्हें आस थी कि बेटा आएगा रुपये-पैसे लाएगा तो पेट की आग पूर्णतः बुझने लगेगी पर दिन बीतते जाने के साथ उनकी बेटे के आने की आस भी कम होने लगी थी. वे बेटे की सलामती की दुआयें करते और क्रूर आशंकाओं से कांपते रहते. धीरे-धीरे उन्हें बेटे का इंतजार कम और अपनी शाश्वत नियति का इंतजार अधिक रहने लगा था.
वह चमकती आँखों वाली लड़की भी उस दिन शाम को उस खास जगह पर पहुंची तो वहाँ कोई नहीं था. जिसे वहां होना था वह तो लोहे की अशुद्धि हो जाने की फुसफुसाहट का सच बनने के इंतजार में रखा गया था. वह कुछ देर इंतजार कर चली गई. जब अगले दो दिन भी जगन नहीं आया तो वह रात को छुपते-छुपाते जगन के पन्नियों,  बोरों से बने टेंट नुमा घर में पहुंची,  वहां भी कोई नहीं था. वह किसी से पूछ भी नहीं सकती थी क्योंकि गांव में बदनामी का डर था,  किसी को अपनी पीड़ा बता भी नहीं सकती थी फिर भी जब हफ्ता गुजर गया तो उससे रहा नहीं गया. उसने जगन के साथियों से पूछा पर किसी को नहीं पता था कि जगन कहाँ गया. किसी ने कहा, “घर चला गया होगा,  कह तो रहा था बहुत दिनों से घर नहीं गया हूँ.” उस चमकती आँखों वाली लड़की अविश्वास के साथ इस बात पर विश्वास करने की कोशिश करने लगी थी, “हां शायद चला गया हो” पर फिर उसका मन कहने लगा, “ऐसे बिन कहे” फिर उसने सोचा, “हां शायद”. फिर उनके बीच कुछ तय भी तो नहीं हुआ था,  कभी वे जादुई शब्द भी जबान पर नहीं आये थे. अब उसके दिल ने धीरे से दोहरा दिया, “हां शायद चला गया हो.” पर क्या दिल का यह मान लेना दिल का घाव भर सकता है?
अब भी वह लड़की गांव आती है तो हर रोज उस खास जगह पर कुछ देर के लिए जरूर जाती है. उसका दिल अब भी जगन का नाम लेता है जो अब उस खरबपति के बेटे की महँगी बाइक के लोहे में कार्बन की अशुद्धि मात्र रह गया है पर क्या वाकई में वह अशुद्धि भर रह गया था?
जिसने जगन के कार्बन अंश वाली बाइक खरीदी, वह एक खरबपति का बेटा ‘राजा’ था. जिसने हमेशा महँगी कारों में ही सफ़र किया था. जिसे बचपन में स्कूल छोड़ने ‘लिमोजिन’ जाती तो वापस लाने ‘मर्सिडीज बेंज’. उसने गरीबी को कभी जाना ही नहीं था. उसका पालन राजकुमार सिद्धार्थ की तरह सारे कष्टों से दूर, ऐशोआराम के वातावरण में हुआ था. इसमें कोई शंका नहीं कि यदि उसे कहा जाता कि गरीबों को खाने के लिये रोटी नहीं मिलती उसे समझ नहीं आता कि केक, पिज्ज़ा, बर्गर इतनी सारी चीजें हैं लोग उन्हें क्यों नहीं खा लेते?
ऐसा ‘राजा’ जब बड़ा हुआ तो उसे महँगी कारों के सफ़र में, ड्राईवर की ड्राईविंग में घुटन होने लगी. उसे खुली हवा में हवाई जहाज सा उड़ना था, हवा से बातें करनी थी, लहरों सा लहराना था, सागौन के दरख़्त सरीखी सीधी सपाट सडकों पर पेड़ पर लिपटी लता सा बल खाना था. उसकी जिद पर उसे यह महँगी बाइक दिला दी गई थी जिसमें जगन पूरे का पूरा कार्बन के रूप में मौजूद था. जगन जिसे जीवन के स्याह रंगों की अच्छी समझ थी पर उसका ह्रदय खुशी, गम, सहानुभूति, संतुष्टि, दया आदि सभी रंगों से लबालब भरा था. जो अभावों के बावजूद बाँट कर खाने में यकीन रखता था. जो अपने आसपास मौजूद लोगों के दुखदर्द बाँट कर कम और ख़ुशी को बाँट कर कई गुना कर देता था.
राजा शोरूम से अपनी बाइक ले कर हवा से बातें करता हुआ चौराहे पर पंहुचा तो लालबत्ती जल चुकी थी. उसने रुक कर नजरें फिराई. एक कली से फूल बनने को तैयार बच्ची फूलमालायें बेच रही थी, फुटपाथ पर दो बच्चे बूटपॉलिश कर रहे थे, छोटे बच्चे को गोद लिये एक-दो महिलायें भीख मांग रही थी, एक बच्चा सिग्नल पर रुकने वाली कारों का शीशा साफ कर रहा था. आज राजा ने जीवन का संघर्ष पहली बार देखा. यही संघर्ष उसे हर ओर दिखाई पड़ा. उसे आश्चर्य हुआ कि लोगों को जीने के लिये इसतरह के काम भी करने पड़ते हैं?
 आज उसने देखा कि उस फूल माला बेचने वाली बच्ची से एक मोटा सा आदमी मालायें खरीद रहा था. उसने माला खरीद एक हाथ से पैसे कुछ इस तरह दिए कि बच्ची की  उँगलियाँ लगभग पकड़ ही लीं और उसीसमय दुसरे हाथ से बच्ची के सिर पर कुछ इस तरह हाथ फिराया कि सिर से हटते ही वह हाथ बच्ची को असहज करता गया. एक तिराहे पर उसने कार का शीशा साफ करने वाले बच्चे की मेहनत पानी में जाती देखी जब सिग्नल हरा होते ही कार वाला बिना पैसे दिए आगे बढ़ गया. उसने जूते पॉलिश करते बच्चों से लोगों को दो रुपये का मोलभाव करते देखा. उसने देखा कि एक भीख मांगने वाली औरत घूम-घूम कर भीख मांग रही है, उसके गोद में सोये बच्चे का सिर एक ओर लटक कर औरत की गति के साथ हिल रहा है पर फिर भी न तो उस औरत को बच्चे की चिंता है न ही वो बच्चा नींद से उठ रहा है उसे बहुत आश्चर्य हुआ क्योंकि उसे पता ही नहीं था कि वो बच्चा भीख मांगने के लिये किराये में लिया गया बच्चा है जो नींद में नहीं बल्कि उसे चटाये गए अफीम के नशे में बेसुध है.
 जीवन के ये स्याह रंग जगन के जाने-पहचाने रंग थे. जगन जो अब राजा की बाइक के लोहे में घुली कार्बन की अशुद्धि मात्र रह गया था. क्या जाने वह मात्र अशुद्धि था कि वही राजा को यह सब देख पाने की नजर दे रहा था लेकिन नयी बाइक की पूजा करने के बाद राजा ने बाइक पर बैठे-बैठे ही भगवान के हाथ जोड़े तो उसकी प्रार्थना में उन सभी के लिये दुआयें शामिल थी. ऐसी दुआ राजा ने पहली बार की थी.
आज राजा ने जीवन का ऐसा नया रंग देखा कि लाखों की बाइक पा कर जब वह घर पंहुचा तो लोगों की पीड़ा से व्यथित था पर बाइक से उतर कर घर पहुचते ही वह यह सब कुछ इस तरह भूल गया जैसे उसने कभी इन्हें देखा ही नहीं था. घर में माली अपनी बिटिया को अस्पताल में भर्ती कराने के लिये पैसे मांग रहा था, उसने नहीं सुना. रामू काका उसे खाना परोसते हुए सब्जी काटते वक्त कट गई ऊँगली के दर्द में बेहाल थे उसे पता भी नहीं चला. यह उसकी अपनी दुनिया थी जिसमें दुःख, दर्द, परेशानी की कोई जगह नहीं थी.
दूसरे दिन राजा फिर अपनी बाइक लेकर निकला तो फिर से जगन की ऑंखें उसकी ऑंखें बन गयी. फिर से सारे ज़माने के दुःख-दर्द उसकी आँखों के सामने थे. कल से आज में यह अंतर आया कि राजा ने उस फूल बेचने वाली लड़की के सारे फूल एक साथ खरीद लिये और ये फूल मंदिर में भीख मांगने वाली महिला को बेचने के लिये दे दिए. अपने पॉलिश किये हुए जूतों पर फिर से दो-दो बार पॉलिश करा ली, कार पोंछने वाले लडके से अपनी बाइक साफ करा ली.
आज उसने देने का आनंद जाना. उसके पास तो संपत्ति का अथाह समंदर था. समंदर से कुछ बूंदें निकल जाये तो समंदर को कोई फर्क नहीं पड़ता पर किसी प्यासे के लिये यही बूंदें जीवन बन जाती हैं. धीरे-धीरे वह प्यासों को पानी बांटने लगा. देने के आनंद में संतुष्टि होती है जितना देते जाओ उसका कई गुना आनंद और संतुष्टि मिलती है जबकि लेने के आनंद में असंतुष्टि होती है, जितना लेते जाओ उतना ही पाने की भूख और असंतुष्टि बढ़ती जाती है.
अब जब-जब वह बाइक में होता, उसका मन आनंद से लबालब भरा होता जबकि बाइक से दूर होते ही यह रीतता जाता. उसे लगने लगा था कि यह बाइक महाराजा विक्रमादित्य के सिंहासन के समान है जैसे सिंहासन जमीन में गड़े होने से बने मिट्टी के टीले पर बैठते ही एक सामान्य चरवाहे को भी न्यायकर्ता बना देता था वैसे ही यह बाइक भी उस पर बैठते ही उसे देने का आनंद प्राप्त करने के लिये प्रेरित करने लगती है. वह देता जाता है और संतुष्ट होता जाता है.
इसी संतुष्ट मन को पाने की कोशिश में वह अक्सर अपनी बाइक लेकर घूमने निकल जाता. जहाँ दुःख-दर्द दिखता, उन्हें दूर करने की कोशिश करता, लोगों की मदद करता. उसने कई स्वयं सेवी संगठन बना डाले, चैरिटी के कार्यक्रम कराने लगा, शहर में उसने वृद्धों के लिये वृद्धाश्रम, अनाथों के लिये अनाथालय, सस्ते अस्पताल आदि बना दिए. बेरोजगारों के लिये प्रशिक्षण केंद्र खोले जहाँ प्रशिक्षण प्राप्त कर लोग अनेक सामान बनाते जिन्हें अन्य संगठन  बाजार तलाश कर बेच देते और बनाने वाले को मिलती मुनाफे में हिस्सेदारी. उसने बाल श्रमिकों के लिये शाम की कक्षायें शुरू की, बेघरों के लिये रेन-बसेरे बनाये, वह बेसहारों का सहारा बना.
धीरे-धीरे उसके परोपकार के कामों की गिनती ही संभव नहीं रह गयी. लोग उसकी जय जयकार करते पर वह यह महसूस करता था कि इन सब जयकारों का वह अकेला हिस्सेदार नहीं है उसकी बाइक भी इसकी हिस्सेदार है क्योंकि इन सारे कामों की प्रेरणा उसे अपनी बाइक पर बैठने से ही मिलती है लेकिन वह यह बात किसी को कह नहीं सकता था उसने अपने इस विश्वास को मन में ही छुपा लिया था. उसका यह विश्वास तब पक्का हुआ जब उसने अपनी बाइक अपने एक दोस्त को दी. अब वह अपनी यह प्रिय बाइक अपने रईस दोस्तों को भी देता है क्योंकि वह जानता है कि यह अपने पर बैठने वाले को देने का आनंद सिखा देगी.

वह यह नहीं जानता कि इसका कारण जगन है जो उसकी बाइक में कार्बन की अशुद्धि के अंश के रूप में मौजूद है पर क्या वाकई जगन केवल अशुद्धि भर बन कर रह गया था? नहीं! अब जगन केवल कार्बन की अशुद्धि नहीं था अपितु अपने संपर्क में आने वाले लोहे को सोना बना देने वाला पारस पत्थर बन गया था.