Thursday 20 March 2014

बरगद कही कहानी

 झील में मंद पवन से उठती हिलोरें हो या ह्रदय में ख़ुशी से उठती हिलोरें दोनों ही मन को आनंदित करती हैं. दूर तक फैली नीली झील का किनारा हो, मुझ बरगद की छॉव हो, ह्रदय में ख़ुशी की हिलोरें हो तो झील की हिलोरों का आनंद चौगुना हो जाता है लेकिन यदि ह्रदय में दुःख हिलोरें ले रहा हो तो झील की लहरें उस दुःख पर मरहम का फाहा रखती हैं. हर सुबह शाम लोग इस झील के किनारे आते हैं, कुछ ख़ुशी बांटने, आनंद महसूसने तो कुछ अपना दर्द हल्का करने. हर किसी को यह झील गोपियों के कृष्ण सरीखी सिर्फ उनसे ही रास रचाती लगती है और इसतरह यह सबके सुख-दुख एक हमदर्द की भांति बाँट लेती है. 
      झील इतनी विशाल है कि इसके एक ओर घनी बस्ती है तो दूसरी ओर हरे-भरे खेत. झील कभी गोल थी पर आज इसकी सरहदें आड़ी-तिरछी लहराती हुई सी हो चुकी हैं. झील के किनारे के साथ-साथ एक कच्ची सड़क है जो खेतों को बस्ती से जोड़ती है. सड़क के किनारे दूर तक आम के पेड़ लगे है. झील के एक ओर कुछ साल पहले सौंदर्यीकरण कार्य कर झील पाट कर एक पार्क और म्यूज़िकल फाउंटेन बनाया गया है जो झील के सौंदर्य में काले टीके का काम करता है. झील के साफ नीले पानी में नीली कुमुदिनी और नील गगन का प्रतिबिम्ब झील के सौंदर्य को अप्रतिम बना देते है. यह झील शहर की धरोहर है. शहर भर के मेजबान अपने मेहमानों को यह झील दिखाने अवश्य लेकर आते हैं. मैं खुद बरसों से इस झील की खूबसूरती का गुलाम बना खड़ा हूँ. 

     अब तो मेरी इतनी उम्र हो गई कि झील के किनारे घटी कोई भी घटना नयी नहीं लगती. यह झील मेरे लिए पीढ़ियों का रंगमंच है जहाँ हर पीढ़ी नए अभिनेताओं के साथ एक सा नाटक अभिनीत करती है. मैं मूकदर्शी बन यह दोहराव पर दोहराव देखता रहता हूँ. इस पीढ़ी में भी मुझे झील किनारे खड़े होने वाले अधिकांश लोगों के चेहरे याद हो गए हैं. मैं यह भी बता सकता हूँ कि यह अलमस्त लड़का जो अपने दोस्तों के साथ खड़ा हो, रोज झील किनारे दोस्तों की महफ़िल ज़माने की बात पर अपने पापा के डांटने का मजाक उड़ा रहा है उसके पापा और दादा भी झील के इस ओर खड़े होने के अपने समय में दोस्तों के साथ यही खड़े होते थे.
      झील के भिन्न किनारों में भिन्न आयु समूह के भिन्न रुचियों के लोग आते हैं मानों यह झील का अघोषित अनुशासन है जो सभी को मान्य करना अनिवार्य है, पार्क की ओर पारिवारिक जमावड़ा होता है, घनी बस्ती की ओर अपने दैनिक काम निपटाने वाली गृहणियों का, खेतों की ओर बने एक घाट में प्रायः किशोर, जवान दोस्तों का समूह होता है, झील के किनारे पड़े पत्थरों पर शराब की बोतल पकड़े पियक्कड़ों का इन के अलावा जहाँ एकांत मिल जाये कुछेक प्रेमी जोड़े वहाँ मिल जाते हैं.
      झील के किनारे खड़े होने के अलावा कुछ लोग  यहाँ डुबकियां लगाते, तैरते, नहाते हैं. कुछ गहरी डुबकियां लगा मौत के सागर में डूब जाते है. वे भूत बन जाते है या भवसागर पार हो जाते है मुझे नहीं पता. मैंने यहाँ लोगो को डूब कर मरते देखा है तो मार कर डुबोते भी देखा है. मुझे हमेशा लगता था कि मैंने एक छोटे शहर में जितनी घटनाएं सम्भावित है अपनी सैकड़ों साल की उम्र में सारी देख ली हैं. अब कोई नयापन मेरे लिए शेष नहीं हैं. पर कल की घटना मेरे लिए भी नयी थी. जिस से मैं अब तक उबर नहीं पाया हूँ.
       रोज की तरह कल भी मंद शीतल पवन ताल के जल में और किनारे खड़े जनसमूहों के ह्रदय में लहरें उत्पन्न कर रही थी. अचानक एक अनजानी लहर उठी जो समस्त जनों में फैलती चली गई. लोगों के ह्रदय जमने से लगे. लोगों ने देखा झील के पानी में एक महिला का शरीर तैर रहा था. शरीर में कोई हलचल नहीं हो रही थी.सारी नजरें उस ओर जम गई. हवा के झोंकों से झील की हिलोरों के साथ लड़की का शरीर भी हिलोरें ले रहा था. महिला नीली कुमुदिनी के ही रंग का सलवार कुरता पहने हुई थी. उसका गोरा रंग पानी से भीग, सूरज की किरणों से चांदी सा चमक रहा था.

      उस शरीर के निकटस्थ, झील के किनारे पर लोग जमा होने लगे, कानाफूसियाँ होने लगीं. कुछ लोग पुलिस को सूचना देने निकल गए. किनारे खड़ी भीड़ उस महिला की कहानी जानने कसमसाती खड़ी रही. पुलिसिया कार्यवाही में उलझने के डर से कोई आगे नहीं आ रहा था. किसी की हिम्मत नहीं हो रही थी कि कम से कम यह तो देख लें कि महिला जीवित है कि नहीं. यह दोपहर बाद का समय था. पुलिस के सर पर तो ढ़ेरों जिम्मेदारियां होती हैं उन्हें जल्दी से जल्दी आने में भी कम से कम एक घंटा तो लगना ही था. पुलिस का जवान आया पर उसे तैरना नहीं आता था अतः प्रशिक्षित तैराक भेजने हेतु खबर भेजी गई.
      अब तक शाम होने लगी थी. लोगों की कसमसाहट बढ़ती जा रही थी. पुलिस भी आ चुकी थी अतः फंसने का कोई डर नहीं था. कुछ रोमांचप्रेमी लोगों को लगा कि यह पता करें कि शरीर में तो हलचल नहीं है पर उसके अंदर जिंदगी की हलचल हो रही है कि नहीं. ऐसे कुछ लोग तैरते उस महिला के निस्पंद पड़े शरीर के पास पंहुच गए. उनमें से एक अपने धड़कते दिल के साथ उस महिला के दिल की धड़कन जानने उसका हाथ पकड़ा. हाथ में जीवन की ऊष्मा थी उसने फिर नाड़ी देखी. पाया कि महिला जीवित है. यह खबर नाड़ी देखने वाले बन्दे के चेहरे के बदलते भाव के साथ ही झील किनारे खड़े लोगों तक पंहुच गई. 
     उनमे फिर से एक लहर उठी, हलचल मची. जो रोमांचप्रेमी शरीर के आसपास तैर रहे थे वे तुरंत सक्रिय हो गए. उस महिला को आनन-फानन में बाहर निकाला गया और अस्पताल ले गए. तब तक महिला को होश नहीं आया था. कोई उस महिला को पहचानता भी नहीं था. शायद वह कहीं बाहर से आई थी. अब तक रात हो चुकी थी. महिला को अस्पताल ले जाने के कुछ ही देर बाद सारी भीड़ छंट गई. सब अपने अपने ठिकाने पर लौट गए बस मैं अकेला खड़ा उस महिला का हाल जानने बेताब हो रहा था पर मुझे पता था कि मुझे कल सुबह तक का इंतजार करना ही होगा. जब सुबह मेरे आसपास लोगों के समूह फिर जुटेंगे तो ही मुझे उस महिला का हाल पता चलेगा. 

      आज सुबह सूर्योदय के पहले से ही मै सुबह की सैर करने वालों का इंतजार कर रहा हूँ. पर आज यह लड़की जो अभी-अभी मेरे पास ऑटो से उतरी है मेरे लिए अनजानी है शायद कोई मेहमान होगी पर मेहमान तो कभी अकेले नहीं आते वो भी इस भिनसारे में तो कतई नहीं. लड़की बिलकुल नाजुक कली सी लग रही है. रंग ऐसा गोरा कि सूर्योदय की लालिमा से लाल चेहरा नव उदित सूर्य का
प्रतिबिम्ब दिख रहा है. हवा से उड़ते भूरे-सुनहरे बाल चेहरे से लुका-छिपी खेल रहे हैं. लाल रंग की घाघरा- चुनरी में लड़की लाल गुलाब की कली लग रही है. चेहरे पर सागर सी गम्भीरता है जो उसकी नाजुकता के साथ मेल नहीं खा रही है.
       ऑटो तो उसे छोड़ कर चला गया और वह मेरे छाँव में आकर खड़ी हो गई है. मैं सोच में हूँ." क्यों आई है वह यूँ अकेले, इस भिनसारे." क्या यह जीवन से जंग हारना चाहती है उसके चेहरे पर एक अद्भुत आभा है. जो मेरे अभी तक के वृहद् अनुभव के आधार पर कह रही है कि नहीं यह हार नहीं सकती पर वो तो जिंदगी से हारी हुई सी मेरी छाँव से दूर झील के पानी को चीरते आगे बढ़े चले जा रही है.
      कल वह महिला थी जिसने मुझे परेशान कर दिया था. और आज यह लड़की मेरी परेशानी का कारण बनी हुई है. मैं अपनी शाखें झकझोरने लगा हूँ पत्ते फड़फड़ाने लगा हूँ शायद कोई सोचे की बिना हवा के ऐसे हलचल क्यों हो रही है. कोई मेरे नजदीक आए और इस लड़की को यूँ गहरे पानी में उतरते देख कर रोक ले. अपनी सैकड़ों साल की जिंदगी में मैनें ऐसी बहुत सी घटनाएं देखी हैं पर ऐसी बैचेनी पहले नहीं हुई शायद मेरी छाँव के ठीक नीचे होने से और कल की घटना से मन कच्चा सा हो गया है.

       वह लड़की आगे बढ़ते जा रही है. झील का पानी पिंडलियों तक, कमर तक, अब गले तक आ गया. मेरी अब साँस ही रुक गई और वह लड़की नीली झील की नीलिमा में डुबकी लगा गई. क्या चाहती है वह? क्या झील की नीलिमा में डूब गगन की नलिमा में तारे सा जड़ जाना चाहती है. मै चाहते हुए भी कुछ नहीं कर सका. 
      तभी सुबह की चहलकदमी करने वाले एक समूह की बातें मुझे सुनाई आई. एक व्यक्ति कह रहा था, ' कल तो गजब ही हुआ. वह महिला जिसे झील से निकाल कर अस्पताल ले गए थे, अस्पताल पहुँचाने तक होश में नहीं आई थी. जब डुबने से पेट में पानी भरा होने की आशंका से उसे उलट कर, पेट दबा कर पानी निकलना शुरू किया गया तो वह महिला होश में आई. होश में आते ही उसने पूछा मैं यहाँ कैसे आ गई. जब उसे बताया कि उसे झील से निकाल कर अस्पताल लाया गया है तो वह नाराज होने लगी. नाराजगी में उसका चेहरा सुर्ख गुलाब सा लाल हो गया था. उसने कहा,'उसे कुछ नहीं हुआ है. वह तो झील के पानी में योग कर रही थी. लोगों ने उसकी योगक्रिया में व्यवधान ला दिया.'
   उसने अपनी बात की पुष्टि के लिए ऑटो वाले का नंबर भी दिया जिसे उसने फिर से फोन करने पर लेने आने के लिए कहा था. पुलिस ने ऑटो वाले से पुष्टि की. इसके बाद लोगों पर बेहद नाराज होते हुए वह चल दी. किस्सा जो भी हो पर वह महिला थी बेहद खूबसूरत. वह इतनी गोरी थी कि सूरज के सामने सुनहरी दिखे तो चाँद के सामने रुपहली, इस बरगद के नीचे खड़ा कर दो तो हरियाली दिखे. 
    यह सुनते ही मेरी नजर उस ओर पड़ी जहाँ वह लड़की डुबकी लगा गई थी. उससे कुछ ही दूर झील के पानी में उसका शरीर तैर रहा था. शरीर में कोई हलचल नहीं थी. हवा के झोंकों से झील की हिलोरों के साथ लड़की का शरीर भी हिलोरें ले रहा था.

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