Monday 3 March 2014

मुझे चाँद चाहिए


                एक दिन चाँद को आसमान से धरती में झांकने पर एक झरोखे से निकलती सतरंगी आभा दिखी. चाँद ने धीरे से आसमान में नीचे आकर, थोडा सा झुक कर देखा. उसे पलंग पर बैठी हुई एक लड़की दिखी. वह सतरंगी आभा उस लड़की के कमरे से निकल रही थी. चाँद ने अपनी शीतल चांदनी को उस कमरे में उजाला करने भेजा. चांदनी से कमरा जगमगा उठा. सतरंगी आभा सात गुनी हो उठी.
      चाँद ने देखा कमरे की दीवारों पर अनेक सतरंगे तैलचित्र लगे हुए हैं. उन सतरंगे चित्रों में एक ही चेहरा अलग -अलग भावों में, अलग- अलग जगहों में, अलग- अलग रंगों में उकेरा हुआ है. कमरे के एक कोने में अनेक मेडल, कप, शील्ड, फ्रेमजड़ित फोटोग्राफ्स लगे हुए हैं. फ़ोटो में वही सतरंगे चित्रों वाली लड़की नामचीन हस्तियों से सम्मान ग्रहण करती दिख रही है.
      चाँद ने चांदनी से बिस्तर पर बैठी हुई लड़की के चेहरे पर उजाला करने कहा. चांदनी उस लड़की के चेहरे के चारों ओर सिमट आई जैसे चाँद में बैठी सन कातती बुढ़िया ने दीए को लड़की के चेहरे से ही सटा दिया हो. यह वही तस्वीरों वाली लड़की थी. अब भी वह लड़की पलंग पर बैठ अपना एक बेहद मोहक चित्र बना रही थी ..... सुदूर ब्रम्हांड में एक सुन्दर से तारे में विस्फोट हो रहा है और उससे एक नन्हा सा तारा जन्म ले रहा है. वह खंडित होता तारा स्वयं लड़की है. 

       चाँद ने उस तस्वीर के जादू से सप्रयास मुक्त होते हुए लड़की की ओर देखा. लड़की चित्र बनाने में तल्लीन थी किन्तु उसके चेहरे पर पीड़ा के भाव थे. यह सृजन की नहीं सचमुच की पीड़ा थी. लड़की को अपना हाथ उठाने में, तूलिका पकड़ने में बेहद तकलीफ हो रही थी फिर भी वो इस नीरव रात में आत्ममुग्ध सी अपनी तस्वीर उकेरते बैठी थी.
       चाँद से रहा न गया. वह धरती पर उतर आया. उसने लड़की से पूछा, "बालिके क्यों खुद को इतनी तकलीफ दे रही हो. बेशक तुम्हारे चित्र ह्रदयस्पर्शी और सुन्दर हैं पर इतनी पीड़ा सह इन्हें क्यों बना रही हो." लड़की ने आँखों में हिलोरें लेती दर्द की लहरों और तिरछी मुस्कान के साथ कहा, "चाँद तुमने मेरी पीड़ा देखी कहाँ है.... फिर अचानक उस लड़की ने चाँद से प्रति प्रश्न किया. "अच्छा चाँद तुम पूछते हो मैं इतनी पीड़ा सह, ये चित्र क्यों बना रही हूँ? पहले तुम ये बताओ कि पिंजरे में बंद पंछी क्यों गाते हैं......? ये पंछी पिंजरे में बंद कर दिए जाते हैं इस लिए गाते हैं या गाने वाले पंछी ही पिंजरे में बंद किये जाते हैं. सभी कहते हैं और तुम भी बड़ी आसानी से ये कह सकते हो, कि पिंजरे में बंद पंछी नहीं गाते अपितु गाने वाले पंछी ही पिंजरे में बंद किये जाते हैं."
       उस लड़की के चेहरे पर एक फीकी पर दृढ हंसी आई. उसने फिर कहा, "पर मेरे लिए तो पहली बात ही सत्य है बिलकुल ध्रुव तारे की तरह अटल सत्य. तुम जानते हो…..ये जो हंसते गाते अपनी मधुर आवाज से सबको अपना बनाते मधुर कंठी परिंदे हैं वे एक दिन अनंत आकाश के प्रवासी थे. नील गगन में अपने पंख फैलाये… आसमान को अपने परों में समेटते…, नभ को पलों में नापते
परिंदे.... एक दिन नियति मानव ने उन्हें काल के क्रूर पंजे में पकड़ तंग पिंजरे में कैद कर दिया, छीन लिया अनंत आकाश, काट दिये नभ नापते पर, खो गयी उनकी आसमानी छत...... अब रह गयी बस लोहे के तारों की बाड़ें और पाँव के नीचे की सलाखें.... टांग दिया पिंजरे के कोने में एक झूला...... आकाश की पींगे मारने वाले असीम आकाशी पंछी को पिंजरे की सीमा में झूलने को .. चिढ़ाने को.
      चाँद निशब्द बस सुनता रहा. उस लड़की ने फिर कहा " उस नभ प्रेमी नभचर के पास अपनी जिंदगी निभाने को कुछ भी तो नहीं रह गया पर इस निपट अंधकार में भी उस जीवट ने अपनी कैदी जिंदगी से हार नहीं मानी.... वह निरंतर अपनी स्थिति की शिकायत करता.... नियति मानव को देख चिल्लाता… यही है.. यही है वो... जिसने मेरे जीवन की जंग को पिंजरे तक सीमित कर दिया
है. यही है…यही है वो... जिसने मेरे सतरंगे जीवन को सुनहरी सलाखों में कैद कर दिया है. पंछी के ह्रदय की कड़वाहट उसकी आवाज में आती. आवाज की यह कड़वाहट उसके ह्रदय में कड़वाहट लाती. एक दिन वह थक गया जैसे नियति मानव के उसे कैद करने के क्रूर कर्म से हार गया हो. पंछी की आवाज में दुःख की नदी बह चली. पंछी की दुःख भरी तान ने सारे भावजगत को दुःख के सागर में
डुबो दिया. पंछी भी इस दुःख के सागर की दुःख भरी लहरों में डूबने उतराने लगा. लहरों से संघर्ष करते-करते जब जान पर बन आयी तो पंछी के मन में जीवन से अनुराग का उदय हुआ. मन में अंकुरित अनुराग, सुरों में प्रतिबिंबित होने लगा तो पंछी स्वयं भी अनुराग की ऊष्मा से उर्जित हो उठा."
       वह लड़की कहे जा रही थी, " पंछी के नियति मानव ने उस से उसका आसमान ले लिया, उसके पर ले लिए तो क्या.... परों की उड़ान न सही सुरों की तान ही सही. तब ही से पिंजरे के पंछी ने अपने मधुर गान से खुद की दुनिया को आनंदित करना आरम्भ किया. सुमधुर, सुरीले आरोहों अवरोहों से भरा तान ठीक आसमान में पंछी की उड़ान सा. नभ तक तैरती स्वर लहरियाँ आसमान को छू
लेने के संतोष से भरती हुई."
      लड़की ने आगे कहा, "ये न सोचना चाँद कि पंछी ने परिस्थितियों से हार मान ली है. अब भी वह उड़ने को बेताब है बस उसे मौके का इंतजार है, पर तब तक वह अपने परों के काटे जाने का शोक नहीं मानना चाहता. अपने अमूल्य जीवन को दुःख में डूबा नहीं रखना चाहता वह तो अपने जीवन मंथन से पाई खुशियों में डूब जाना चाहता है."
      लड़की के होठों में एक दर्दीली मुस्कान आई, "बस ऐसी ही मेरी जिंदगी है. मेरी जिंदगी में वो घनघोर अंधकार से भरा दिन आया जब मेरी जिंदगी के स्वर्णिम, रक्तिम सूर्य को काले अँधेरे राहु ने ग्रस लिया. मैं स्कीइंग करते हुए अपना संतुलन खो बैठी. जब मुझे होश आया तो मेरी जिंदगी पलंग और अपने अधिकतम विस्तार में इस कमरे के झरोखे से झांकते आसमान के एक टुकड़े तक सीमित रह गई थी. गर्दन से नीचे शरीर में कोई हलचल नहीं थी. मैं नियति के पिंजरे में कैद हो कर रह गई." "सारे- सारे दिन और पूरी -पूरी रातें आंसुओं से ह्रदय को सींचते बीतने लगी. अब तक की जिंदगी की किताब के सतरंगे पन्नों के आगे के पन्ने सिर्फ काले …और गहरे होते जा रहे काले रंग में डूबे दिखने लगे.
      मैं इस कालिमा में खुद को खोने लगी बस तभी उम्मीदों का इंद्रधनुष जिंदगी के क्षितिज पर उभरा. इस सतरंगे इंद्रधनुष ने मेरे हाथों में अपने सातों रंग थमा दिये और मेरे चारों ओर इनकी सतरंगी आभा बिखेर दी." आज तो मैं इस जरा सी पीड़ा के साथ अपने हाथ उठा तस्वीर बना ले रही हूँ. वे दिन तुमने कहाँ देखे हैं जब मुझे तुम चाहिए थे पर भगवान ने मुझसे मेरा सब-कुछ छीन, इस पलंग में कैद कर दिया था. तुमने वे दिन भी नहीं देखे हैं जब इन उँगलियों से तूलिका पकड़ना प्राणांतक पीड़ा देता था. उस प्राणांतक पीड़ा से लड़, जब मैंने इतनी तस्वीरें बना ली हैं तब तुम आये हो." चाँद चुप रह गया. उसे आभास भी न था कि कोई इस शिद्दत से उसे चाहता है.
        उस लड़की ने हंस कर कहा, " पर मुझे पता है तुम्हे पाने तपस्या करनी होती है." " मैंने इतने कष्ट सहे क्योंकि मैं तुम्हें पाना चाहती थी. मैं अपने इस एक कमरे की दुनिया और खिड़की से दिखते आसमान के इस टुकड़े से ही संतुष्ट नहीं हो सकती थी. देखो आज तुम्हारे सहित सारा का सारा आसमान मेरा है." अपने हाथ में तूलिका थामे उस लड़की ने चाँद की आँखों में सीधे झांकते हुए कहा. उसकी आँखों में उत्साह, जिजीविषा, संकल्प की बिजली कौंध रही थी. चाँद उन आँखों में कौंधती अदम्य जिजीविषा की बिजली
को मंत्रमुग्ध देखते रह गया.

No comments:

Post a Comment